सोफ़िया यह तूने क्या किया
दिल मेरा ले लिया सोफ़िया
दिल को चुराके अपना बनाके
मुझको ख़ुद से अंजाना कर दिया
सोफ़िया तू है मेरी सोफ़िया
किससे कहूँ कि मुझको
ऐसा क्यों हो गया
जबसे तुझे देखा सोफ़िया
तब से ऐसा हो गया
रात को ख़ाबों में तू आने लगी है
क्या कहूँ कितना मुझे तड़पाने लगी है
आहें भरता हूँ यह सोचकर
कि कब मिलने आयेगी तू
सोफ़िया सोफ़िया
हम हों ना कभी जुदा सोफ़िया
सोफ़िया तू है मेरी सोफ़िया
कितने बहाने बनाने लगा
दिल यह मुझको सताने लगा
देखूँ जो न तुझे एक पल मैं
दिल को क़रार आता नहीं है
तेरे सिवा कोई दिल को
इस तरह लुभाता नहीं है
सोफ़िया तू है मेरी सोफ़िया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२