तुम न जानो क़रार में भी बेक़रारी है
दिल तो गया अब जान की बारी है
सबसे पूछता फिरता हूँ तेरा पता
तुम तक का सफ़र अब तक ज़ारी है
मुझको कह लेना तुम अपना दीवाना
दाँव है तुम्हारा और जान जुआरी है
हँस के लगा लेना गले से तुम मुझको
मैंने दिलो-जाँ तुम पर हारी है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’