सभी पे खुल गया राज़े-मुहब्बत
छिपाया लाख पर न छिपा राज़े-मुहब्बत
जल गया ज़माना दिल ही दिल में
जाना जब तेरा-मेरा राज़े-मुहब्बत
वह वक़्त भी मुश्क़िल था न सनम
जब तलक छुपाया राज़े-मुहब्बत
क़ीमते-दिल अदा कीजिए दिल से
निहाँ अब न रहा राज़े-मुहब्बत
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’