तुमसे गर अपना विसाल होता
रंगे – होली माहो – साल होता
मेरे चेहरे पर होती ताज़ा इक बहार
तेरे चेहरे से उड़ता गुलाल होता
तेरे हुस्न की ज़ौ से छिपता चाँद
मुझ सिवा हर इक बेहाल होता
किस तरह फिर जाऊँ तेरी खा़हिश से
यह न होती फिर किसका ख़्याल होता
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’