इश्क़ ने हमको मारा वो भी मुफ़्त में
क़ातिल ने लिया दिल हमारा वो भी मुफ़्त में
दुश्मनों और ग़ैरों का तो यह काम है
ताना यहाँ तो दोस्तों ने मारा वो भी मुफ़्त में
हर्फ़े-लहू पर भी तुमने ग़ौर न किया
बह गया कितना सारा वो भी मुफ़्त में
यह क़िस्सा कुछ पुराना है मगर
मोम हुआ दिल तुम्हारा वो भी मुफ़्त में
नज़रे-इनायत का दाम दिल लगा बैठे
क़ुबूल किया तुमने नज़ारा वो भी मुफ़्त में
खिला जो तेरे रुख़सार पे तबस्सुम
दिल मैंने खु़द-ब-खु़द हारा वो भी मुफ़्त में
काम आये कभी बेक़रारि-ए-दिल भी
तेरी यादों में दिन गुज़ारा वो भी मुफ़्त में
चैन दे हमें नज़रे-इनायते-शीना
कहें तो मर जायेंगे दोबारा वो भी मुफ़्त में
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’