शाम से बैठे रहते हैं दरवाज़े पर
जिस दिन से तुम आये नहीं दरवाज़े पर
आँखों के आँसुओं में वो लम्हा थम गया है
अभी तक बहा नहीं दरवाज़े पर
हर आहट हर चाप यूँ होती है
जैसे कि हमें तुम बुलाते हो दरवाज़े पर
एक मुद्दत से वो सहर देखी नहीं
जो कभी मैंने देखी थी तेरे दरवाज़े पर
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२