तू सामने हो तो शाम होती है
ग़मगीन नहीं हसीन होती है
चार सालों से है जो तस्वीर
वह और भी रंगीन होती है
जब कोई अपना मिल जाए
ज़िन्दगी और भी शामीन* होती है
शाम जब ढलक के आती है
तू और भी महज़बीन होती है
* शाम की तरह ख़ूबसूरत
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२