वह चाँद आज भी आता है
होंठों पे जब नाम आपका आता है
शाम ज़रा-सी झुक जाए तो
वह मुस्कुरा के चमक जाता है
पूछा है चाँद ने कई बार
क्यों वो चाँद नज़र नहीं आता है
चाँद की बेक़रारी बढ़ जाए तो
शाम से पहले चला आता है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२
वह चाँद आज भी आता है
होंठों पे जब नाम आपका आता है
शाम ज़रा-सी झुक जाए तो
वह मुस्कुरा के चमक जाता है
पूछा है चाँद ने कई बार
क्यों वो चाँद नज़र नहीं आता है
चाँद की बेक़रारी बढ़ जाए तो
शाम से पहले चला आता है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२