दीवाना यह सरफ़रोश है
लहू में गर्मिए- जोश है
हूँ दीवानगी से निशाने पे
ख़ुदी में सैय्याद मद्होश है
मुझे वो इल्ज़ाम दे रहा है
और मेरी ज़बाँ ख़ामोश है
सर जिससे कर बैठे हो
वो मेरे दुश्मन का दोश है
तुम बिन जहाँ चैन आये
वो रोज़े-जज़ा का आगोश है
मुझ मान्निद है जो तन्हा
वही शख़्स ख़ाना-बदोश है
तर क्यों है आँख लहू में
तुम्हें इसका कुछ होश है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३