हम खु़द से इंतिक़ाम लेते हैं
जब कभी तेरा नाम लेते हैं
अब दिल नहीं देते यूँ किसी को
ज़रा फ़ासले से सलाम लेते हैं
कौन है किसका हमको बतलाओ
लोग दोस्ती का दाम लेते हैं
जब भी देखा किसी को किसी से जुदा
हम अपना दिल थाम लेते हैं
हम हैं हुस्न के ख़ाह जान लो
हुस्न के मज़े मुदाम लेते हैं
हमको ज़ौर है ज़माने से ‘नज़र’
कि रू-ब-रू उनका कलाम लेते हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’