तुझे देखके मैंने जीना सीखा था
पर मैं बेवफ़ा था
शायद तूने की हो थोड़ी वफ़ा
पर मैं बेवफ़ा था
तेरे इश्क़ में हूँ यही कहता था
पर मैं बेवफ़ा था
जब मैंने कभी
वफ़ा की ही नहीं
तब कैसे मुझे
वफ़ा का अंजाम मिलता
हाँ, मैं बेवफ़ा था
हाँ, मैं बेवफ़ा था
गुनाह पर गुनाह करता गया
ख़ुद ही में और गिरता गया
तूने सँभाला दिया
और मैं तुझे धोखा देता रहा
हाँ, मैं बेवफ़ा था
हाँ, मैं बेवफ़ा था
चाँद हो सितारें हों
ख़ुशबू हो नज़ारे हों
तुम्हारी थी ख़ाहिश यही
और मैं इन ख़ाहिशों को
चूर करता रहा
हाँ, मैं बेवफ़ा था
हाँ, मैं बेवफ़ा था
आज यह बेवफ़ाई
मुझको खलने लगी है
आज यह तन्हाई
मुझमें जलने लगी है
एतबार कैसे मेरा करोगी
जबकि मैं बेवफ़ा था
हाँ, मैं बेवफ़ा था
मगर अब नहीं
मगर अब नहीं
मैंने यह सौदा कर लिया
ख़ुद से वादा कर लिया
मैं बेवफ़ा था कभी
मगर अब नहीं
मगर अब नहीं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२