जिससे दुनिया ने हर चीज़ छीनी
जिसे अपनी चाहत न मिली
जिसके दरवाज़े पर खु़शी आकर लौट गयी
जिसकी आँखों से नमी सूख गयी
जिसकी तरफ़ कोई नहीं देखता
जो महफ़िल में तन्हा बैठता है
जिसके दिल में दर्द का दरिया है
जो बेरोज़गार इश्क़ से घूमता है
अजनबी है जिससे हर मौसम
जिसके पास कोई नहीं जाता
जिसके मन में सच का निवास है
जो मुसीबतों से कभी नहीं हारा
जो इबारत है इश्क़ की
जो अच्छा है ज़रा और बुरा भी
जो ताक में है बहार लौटेगी
जो जीत जायेगा सभी से
…वह कौन है?
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३