वह शाम फिर आयी
वह गुलाबी चाँद फिर आया
वह फिर ढहीं बारिश की दीवारें
इल्ज़ाम मुझपर आया
कोई गुमाँ नहीं हुआ
कोई ज़ख़्मे-निहाँ नहीं पिया
सब बयाँ हैं
किसलिए दर्द असर पाया
वह शाम फिर आयी
वह गुलाबी चाँद फिर आया
मुझको यह नुमाया है
ख़त किसलिए जलाया है
शबो-रोज़ के पुरज़े क्यों किये
क्यों यह ज़हर खाया
वह शाम फिर आयी
वह गुलाबी चाँद फिर आया
इक उम्र दराज़ कर दो
आँखों में मिराज़ भर दो
यों भी जी लूँ कुछ देर तलक
क्या दीवारो-दर, क्या साया
वह फिर ढहीं बारिश की दीवारें
इल्ज़ाम मुझपर आया
दौरे-ग़म, यह तन्हाई रग-रग में
यह ज़ख़्म के निशाँ
और क्या मेरी…
दुआ के हिस्से असर पाया
वह फिर ढहीं बारिश की दीवारें
इल्ज़ाम मुझपर आया
जब विसाल लम्हा था
तो फ़िराक़ उम्र क्यों है
क्या कुसूर उसके सर
क्यों जिये उम्रे-नज़र ज़ाया
वह शाम फिर आयी
वह गुलाबी चाँद फिर आया
वह फिर ढहीं बारिश की दीवारें
इल्ज़ाम मुझपर आया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३