यादों की पुरवाई से इश्क़ की आग भड़कती है और
नम आँखों में आँसुओं की नमी सुलगती है और
मैं बुरा हूँ शक़्लो-सूरत से क्या तुम मुझे चाहोगी
इस कश्मकश से जाँ मेरी अटकती है और
मेरे इश्क़ को है इम्तिहान तुमसे इक़रार तक
ख़ुद पे यक़ीं नहीं मुझे ज़ुबाँ लरज़ती है और
दिल का क्या करें तुम पर आ गया फ़ितरत से
तेरा नाम लेकर धड़कन धड़कती है और
अपनी ख़ाहिश दिल में दबाऊँ कैसे ज़ोर नहीं
साँस सीने में होकर वज़नी तड़पती है और
तुम न मिले तो जाने क्या मुक़र्रर है नसीब में
दिल में उठ-उठकर आह चिटखती है और
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३