जब भी लबों पे तुम्हारा नाम आया
यह चश्मे-अश्कबार भर आया
जब भी सीने में दिल महसूस किया
उसमें तुम्हारा प्यार भर आया
जहाँ भी तुम्हारे पाए दिखायी दिये
तुम्हारे सजदे में मेरा सर आया
जब भी शाम से मुख़ातिब हुआ मैं
मुझे तुम्हारा चेहरा नज़र आया
मेरी हसरतें पाँव के नीचे दबी हैं
कब कहूँगा मेरा ख़ुदा मेरे घर आया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३