यह कैसा लम्हा है
यह कैसा एहसास है
तू पलकों में क़ैद है
दिल के पास है
क्या देखूँ तेरे सिवा
क्या चाहूँ तेरे सिवा
मेरे दर्दे-दिल की
तू ही तो है दवा
खिलते हुए लम्हे सब
खिल गये हैं अब
मैं तुझको महसूस करूँ
साँस लूँ जब
आज जो देखा तुझे
याद आया मुझे
लोग दीवाना क्यों
कहते है मुझे
जब निगाहों ने छुआ
यह एहसास हुआ
तूने भी मुझको सनम
प्यार है किया
दुनिया बदल गयी है
तू मुझे मिल गयी है
ज़िन्दगी मेरी इक हसीन
शाम हो गयी है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
3 replies on “यह कैसा लम्हा है”
hello
bhaav achhe hain lekin shilp ko kuch aur tarashne kee jaroorat hai…….shubhakaamana
suggestion ka shukriya Rama Ji… but I am surprised ki aap Zaroorat ko Jaroorat likhati hain…