ज़ोफ़ जिस्म में रूह ज़िन्दगी तलाश करती है
तुमसे पुरानी बन्दगी तलाश करती है
क्या हुआ हम क्यों बिछड़ गये बतलाओ तो
स्याहे-शब रोशनी तलाश करती है
हम आज घने जंगलों में हैं धूप की मानिन्द
जिसको उसकी बेरुख़ी तलाश करती है
हमने तुझे इक सदा दी थी राहे-मंज़िल से
वो मेरी सदा तुझे आज भी तलाश करती है
हम बहुत उदास थे शामे-सादगी की तरह
फ़ज़िर इक नयी सादगी तलाश करती है
मेरी मोहब्बत के जंगलों में ख़िज़ाँ का मौसम है
कि वह आज अपना माज़ी तलाश करती है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४