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मेरा गीत

काश कोई ऐसा होता

काश कोई ऐसा होता
जो समझता दर्दे-दिल
वो राह हमें ऐसी बताता
ख़ुद मिल जाती मंज़िल

बर्बादियाँ भी देखी हैं मैंने
आबादियों से भी गुज़रा हूँ
जैसे मैं पहचानता हूँ सभी को
लोगों से यूँ मिला करता हूँ

काश कोई ऐसा होता
जो समझता दर्दे-दिल
वो राह हमें ऐसी दिखाता
ख़ुद मिल जाती मंज़िल

धीमे-धीमे बहता है लहू
नब्ज़ कभी-कभी खो जाती है
कैसे ज़िन्दा रहता हूँ,
बात ये मुझको उलझाती है

काश कोई ऐसा होता
जो समझता हाले-दिल
हाथ थामकर मेरा
मुझे समझाता राज़े-दिल

काश कोई ऐसा होता
जो समझता दर्दे-दिल
वो राह हमें ऐसी बताता
ख़ुद मिल जाती मंज़िल


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२ 

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मेरा गीत

मैं तुमसे प्यार करता हूँ

मैं तुमसे प्यार करता हूँ
आज इज़हार करता हूँ
दिल की बात जो में थी
वो आज मैं कहता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ

ख़ुशबू उड़ी है बाग़ों में
आने लगी तू ख़ाबों में
तेरे बिना इक पल भी रहना
आसान नहीं है
इश्क़ में जीना इश्क़ में मरना
आसान नहीं है

पाक ताबीज़ें छूकर कहता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ

दिल की बात जो दिल में थी
वो मैं आज कहता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
आज इज़हार करता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ

प्यार में तेरे आवारा हुआ
इश्क़ में मैं नाकारा हुआ
ढूँढ़ रहा था मैं तुझको
आज मिली हो तुम मुझको
इश्क़ मेरा रंग लायेगा
यार ज़माना झुक जायेगा

दिले-ज़मीं छूकर कहता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२

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मेरा गीत

एक परी धरती पर उतरी

एक परी धरती पर उतरी
वह है इतनी सुन्दर
जैसे हो चंचल तितली
उसके स्वर्णिम केशू
उसके जगमग नैन
जैसे कजरारी रैन
वह है प्रेम की परिभाषा
मधुर मिलन की आशा

एक परी धरती पर उतरी
वह है इतनी सुन्दर
जैसे हो जलती अग्नि
वह है ऐसे मुस्काती
जैसे पवन प्रेम-राग सुनाती
चंदन जैसी उसकी
काया उजली-उजली
मैं तड़प रहा हूँ
जैसे जल बिन मछली

एक परी धरती पर उतरी
वह है इतनी सुन्दर
जैसे हो चंचल तितली
रोकना चाहे पाना चाहे
दिल अपना बनाना चाहे
पर क्यों कह न पाये
यह क्यों घबराये
कहाँ उड़ती चली वह
नीले-नीले अम्बर में


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२

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मेरा गीत

तुम न आये

तुम न आये
यह मौसम भी आ गया
एक शक़ था दिल में
वह भी घाव खा गया

रेत जो उड़ रही थी
बारिश की बूँदों में जम गयी है
पानी जैसी बह रही थी
कच्चे धागों में बँध गयी है

तुम न आये
यह मौसम भी आ गया
एक शक़ था दिल में
वह भी घाव खा गया

जैसे कोई आ रहा होगा
ऐसी चाप सुनायी दे रही है
मैं जिसे ढूँढ़ता हूँ
वो ज़िन्दगी कहीं तो जी रही है

तुम न आये
यह मौसम भी आ गया
एक शक़ था दिल में
वह भी घाव खा गया

भीगी आँखों में तेरा चेहरा था
ग़मी का मौसम गहरा था
दर्द मिला तो मिला मुझे
आसमाँ का चाँद भी खो गया


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२

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मेरा गीत

ज़िन्दगी बहुत दूर तक नहीं जायेगी

ज़िन्दगी बहुत दूर तक नहीं जायेगी
जाकर मेरी क़ब्र तक लौट आयेगी
अफ़साने गीले पत्तों की तरह धुलेंगे
ये जिस्म के रग-रग से निकल आयेगी

रुकेगी जब बदन में नब्ज़ों की हलचल
पल-पल मुझे सिर्फ़ तू नज़र आयेगी
रात का दामन थामे-से थमता नहीं आज
इन लफ़्ज़ों में सुबह कहाँ ठहर पायेगी

ज़िन्दगी बहुत दूर तक नहीं जायेगी
जाकर मेरे दरवाज़े तक लौट आयेगी
ज़हर पी लूँ मगर मुझे मौत क्या देगी
तेरी रूह से मेरी रूह कैसे मिल पायेगी

मिले अगर हम कभी तो एक हो जायेंगे
फिर ये फासले दर्मियाँ न बन पायेंगे
ख़ुशी तुझे इक रोज़ ज़रूर ढूँढ लायेगी
कभी न कभी तू मेरी ज़िन्दगी में आयेगी


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२