हमने आसमाँ से टूटके
गिरते सितारे को
ज़मीं पे आते देखा है
आसमाँ पे था तो चमकता था
ज़मीं पे है तो दहकता है
फ़र्क़ है बस थोड़ा-सा
‘कितना है?’ इतना है!
जाओ उठा लाओ उसे…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
Merii nazm
हमने आसमाँ से टूटके
गिरते सितारे को
ज़मीं पे आते देखा है
आसमाँ पे था तो चमकता था
ज़मीं पे है तो दहकता है
फ़र्क़ है बस थोड़ा-सा
‘कितना है?’ इतना है!
जाओ उठा लाओ उसे…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
ज़िन्दगी…
एक हीरे की अंगूठी है
न उंगली में पहन सकूँ
न ज़ुबाँ से चाट सकूँ
मौत और मेरे दर्मियान
बस यही तो है!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
रक़ाबी चाँद जला दो
यह रात चाँदनी हो जाये
कभी तो पास बुला लो
तेरी नज़दीकियों का
मुझे एहसास हो जाये
गुलाबी शाम ढलती है
रोज़ गुज़रती हो
मेरे घर के सामने से
मैं दिल थाम के बैठा रहता हूँ
आइना जब भी हो हाथों में
उससे तेरी बातें करता हूँ…
रक़ाबी चाँद जला दो
यह रात चाँदनी हो जाये
एक रिश्ता बना लो
मुलाक़ात लाज़मी हो जाये
तेरे सिले हुए लबों पर
क्या इक़रार होगा
मेरा ख़्याल है कि इज़हार होगा
बात कोई नही, बात तुम में है
मैं न हूँ शायद तुझमें
पर तू मुझमें है…
रक़ाबी चाँद जला दो
यह रात चाँदनी हो जाये
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
यह ज़िन्दगी मेरी एक पतंग है
मैं जिसको चाहता हूँ
वह मुझसे बेरंग है
उड़ती है बिल्कुल अकेली
ढ़ूढ़ती है कोई सहेली
यह सच है या कोई पहेली
कभी इधर डोलती है
कभी उधर डोलती है
जाने किसमें क्या टटोलती है
यह मुमकिन को
ना-मुमकिन समझती है
जितना समझती है
उतना ही उलझती है
यह ज़िन्दगी मेरी, एक पतंग है
मैं जिसको चाहता हूँ
वह मुझसे बेरंग है
वह साथ नहीं मेरे
फिर भी लगता है मेरे संग है
यह ज़िन्दगी मेरी एक पतंग है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
जब से भूल जाना चाहा तुमको
तेरी याद और भी आती है
सपना क्या कभी कोई ऐसा हुआ
जो बिखरा नहीं
बची राख को आँधी
मेरी कब्र तक उड़ा ले जाती है
तुम फिर क्यों मेरी निगाहों में
भर आये आँसू
क्या कोई दर्द हुआ दिल में
या फिर वह तस्वीर मिल गयी
यह तो बताये कोई
मुझे तू क्यों याद आती है?
जब से भूल जाना चाहा तुमको
तेरी याद और भी आती है
चाँद है आसमाँ पर, ज़मीं पर नहीं
बस बात इतनी है जो मुझे तुमसे
दूर नहीं जाने देती है आँसू,
क्या हुआ ऐसा? गुल खिल गये
जो दिए जल गये
क्या यह सब ख़ाब है?
मुझे तू नज़र आती हैं…
जब से भूल जाना चाहा तुमको
तेरी याद और भी आती है
निगाहों में, नज़ारों में, तू बेवफ़ा
सपनों से दूर जा, न याद आ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९