जाने किस गली में, मैं चाँद भूल आया हूँ
जाने किस गली में चाँद मुझे भूल आया है
तन में जो जलती है रफ़्ता-रफ़्ता, तन्हाई है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
Merii triveNii
जाने किस गली में, मैं चाँद भूल आया हूँ
जाने किस गली में चाँद मुझे भूल आया है
तन में जो जलती है रफ़्ता-रफ़्ता, तन्हाई है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
कितने दिन हुए कोई टूटता सितारा नहीं देखा
मेरे हश्र को एक यह बुनियाद और सही…
क्या तू अब भी मुझे अपनी दुआ में माँगती है?
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
गुनचे चाँदनी देखकर मुस्कुराने लगे
महक उठी रिदा यह चाँदनी की…
शबनमी रात और भी हसीन हो गयी है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
मैं अगर एक तरफ़ा हूँ तो यह भी सही
इस बद्तर ज़िन्दगी में यह क्या कम है
हर शय तेरे सिवा कुछ दिखता ही नहीं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
कोई हमसायादार पेड़ नहीं मिला
ज़हर मिले तो ज़हर भी खा लूँ
यह शाम की धूप बहुत कड़ी है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३