Categories
मेरी नज़्म

वो ऐजाज़ है तब्बसुम का

उसकी पाज़ेब आज मेरे हाथों में है तो
लबों से कुछ कहती नहीं, ख़ामोश है
उसके पाँव में झनकती थी तो
मुझसे अनकही बातें कह दिया करती थी
पत्तों पर गिरती बूँदों की तरह
पिछ्ली बारिशों में छम-छम बजती थी

बदन में उसके लिए साँसों की एक लड़ी है
बजती रहती है सीने में हर पल हर घड़ी
उसका नाम ही बजता है मेरी साँसों में
भूलता नहीं उसको भूलने के बाद भी क्यों

वो हवा है, खु़शबू है, फ़िज़ा है, रंग है
वो ऐजाज़ है तब्बसुम का,
माहे-नख़्शब है चाँद उसके आगे
वो शुआ है, सजदा है, आमीन है, दुआ है
वो ज़िन्दगी है, जान है
हाँ, मैं बावला हूँ उसी के इश्क़ में


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

Categories
मेरी नज़्म

मेरी आख़िरी जिजीविषा…

क्या आज उसने सच कहा
क्या मुझे ‘तुम्हें’ भूल जाना चाहिए
क्या वह तुम ही हो
जिसने मेरी सोच का दायरा बाँध दिया है
क्या सचमुच ऐसा ही है
क्या तुमसे आज़ाद होकर मैं
एक क़ामयाब शख़्स हो पाऊँगा
क्या ऐसा है कि मैं तुम्हें भूलकर
कोई खु़शी कोई मंज़िल पा सकूँगा
क्या मेरी दुनिया तुम बिन
किसी नयी सोच के साथ
इस तरह फिर कभी हसीन होगी
क्या आज उसने सच कहा कि
मैं तुम्हारे पीछे दौड़ते-दौड़ते
अपनी राहे-मंज़िल से भटक गया हूँ
क्या उसकी यह बात मुझे मान लेनी चाहिए
और तुम्हें भूल जाना चाहिए
आख़िर वह ऐसा क्यों कह रहा है
उसका मक़सद क्या है
क्या उसने सचमुच एक दोस्त की तरह बात की
या फिर जिस तरह से वह दूसरों से
अपने रिश्तों को नहीं रखता
उसी तरह से वह मुझसे
मेरी आख़िरी जिजीविषा भी छीन लेना चाहता है
मगर क्यों आख़िर क्यों
मैं यह सवाल खु़द से कर रहा हूँ
क्या आज उसने सच कहा

नहीं वह झूठा है… बातिल है…
मुझे उसकी बातों में नहीं आना चाहिए
हाँ यही ठीक है…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

Categories
मेरी नज़्म

इक बदन की ख़ाहिश लिए

बहुत उदास था मैं आज सारा दिन
सोचा कि थोड़ी देर तुमसे बात कर लूँ
सो ज़रिया-ए-नज़्म…
तुमसे बात कर रहा हूँ…

सोचा जब कभी मिलोगी
यह नज़्म खु़द पढ़ लोगी,
तुम्हें आदत जो है
बिन माँगे मेरी किताब पढ़ने की…

खु़द से सारा दिन बचता फिरता रहा
कहीं जो कोई हमदर्द मिला
तो बस… दो पल के लिए…
मुझसे लोग अक्सर ऐसे ही मिलते हैं…
तुम्हारे सिवा…

तुम्हें भूल जाने की कड़वी बातें
मेरा पीछा करती रहीं,
और मैं सारा दिन…
तन्हाई से भागता रहा

आख़िर रात हुई
और मैं फिर तन्हा हूँ
मुझे तुम पागल कह लेना
चाहो तो दीवाना भी

पर सच तो यह है कि
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
और…
हमेशा-हमेशा करता रहूँगा…

बदन भटकता है तड़पता है
इक बदन की ख़ाहिश लिए
मगर मैं हाँ मैं तड़पता हूँ
तुम्हारे खा़ब… तुम्हारे एहसास…
तुम्हें पाने के लिए

मुझे छोड़कर तुम कहीं मत जाना
कहीं मत जाना यही इल्तिज़ा है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

Categories
मेरी नज़्म

वरना तो दिल में…

अच्छा हुआ तू मेरे सीने में
दर्द बनके साँस लेती है
वरना तो दिल में…
हज़ार दर्दों को पनाह मिल जाती…

तेरा दर्द तो मेरा हम दर्द है
जाने दुनिया के दर्द
हमदर्द होते…
या तन्हाई में मुझे काटने दौड़ते

तेरा शुक्रिया कैसे अदा करूँ
तुमसे जीने का बहाना
और मरने की वज़ह
दोनों मिलीं हैं

अच्छा हुआ तू मेरे सीने में
दर्द बनके साँस लेती है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

Categories
मेरी नज़्म

मगर ऐसा कुछ हुआ ही नहीं

मैंने सोचा था
मैं तुम्हें भूल जाऊँगा
और शायद तुमने भी यही सोचा हो कि
मैं तुम्हें भूल गया

मगर ऐसा कुछ हुआ ही नहीं
दिल पे मैंने क़ाबू किया
बहुत ज़बर किया…
लेकिन यह शबो-रोज़
तुम्हारे ही ख़्यालों में मशरूफ़ रहा

मैं जिधर भी जिस शै को देखता हूँ
उसमें मुझे…
तुम्हारा ही नूर… तुम्हारी अदा… तुम्हारा रंग…
नज़र आता है

बस यही इक बात कहना चाहता हूँ
मैं तुम्हें भूल नहीं पाया,
शायद यही प्यार है…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’